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Complimentary Poem

आप भी अब मिरे गम बढ़ा दीजिए
मुझको लंबी उमर की दुआ दीजिए

मैने पहने है कपड़े, धुले आज फिर
तोहमते अब नई कुछ लगा दीजिए

रोशनी के लिए, इन अंधेरों में अब
कुछ नही तो मिरा दिल जला दीजिए

चाप कदमों की अपनी मैं पहचान लूं
आईने से यूँ मुझको मिला दीजिए

गर मुहब्बत ज़माने में है इक खता
आप मुझको भी कोई सज़ा दीजिए

चाँद मेरे दुखों को न समझे कभी..!!