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Hindi Poem

मन-मन में बसी हिन्दी

इसमें चंदा की शीतलता, इसी में सुन्दरता सर की।
इसी में रामायण गीता, इसी में मोहम्मद और ईसा॥
ये भावों की अभिव्यक्ति, ये है देवों की भी वाणी।
इसी में प्यार पिता का तो, इसी में लोरी भी माँ की॥


खान जो सूर-तुलसी की, वहीं दिनकर और अज्ञेय की।
सइमें मर्यादा निराला की तो मादकता बच्चन की।
इसमें मस्ति श्री हैं मन की, इसमें श्रद्धा भी है तन की।
कथा ये राम और सीता की कथा ये कृष्ण और राधा की।


सुनो खामोश गलियों में रहने वालो तुम सुन लो।
हिन्दी भारत की भाषा है, और भारत वर्ष हमारा है॥
इसके सम्मान के खातिर, जंग करनी भी पड़ जाए।
पीछे हटना यहां पर तो हमें अब नागवारा है॥


हिन्दी गंगा की धारा है, जो कर देती प्लावित तन मन।
बिना इसके अचल निस्पंदन लगता है सारा-जीवन॥
ये तो वो आग है जिसमें, ढुलकते बिंदु हिमजल के।
ये जो जलदों से लदा है गगन, ये फूलों से भरा है भुवन॥