यह साए हैं , दुनिया की परछाइयों की
भरी भीड़ में , खाली तनहाइयों की
यहाँ कोई साहिल - सहारा नहीं है
कहीं डूबने को किनारा नहीं है
कई चाँद उठ कर जलाए - बुझाये
बहुत हमने चाहा ज़रा नींद आये
यहाँ सारे चेहरे हैं मांगे - हुए - से
निगाहूँ में आंसू भी टाँगे - हुए से
बड़ी नीची राहें हैं उचाइयों की
ये साए हैं ,दुनिया है परछाइयों है
भरी भीड़ में , खाली तनहाइयों है