सोच पर विजय कैसे मिले ?
बहुत सोचा मैने फिर पाया कि हासिल कुछ नहीं आया,
फिर सोचा कि मैने इतना क्यों सोचा आखिर क्या पाने को,
लगा हाथ निर्णय मतलबी बन जाने को,
फिर सोचा अब नहीं सोचना है,
जीवन तो जीवन है इसे सफल बनाना है,
बस निकल पड़े बरस दर बरस,
यूं ही इस सोच में, आज मैं फिर सोच रहा हूं,
कि आखिर क्यों सोच रहा हूं ?
क्या सोच रहा हूं ?
किस लिये सोच रहा हूं?
उत्तर फिर भी यक्ष प्रश्न बना खड़ा पाता हूं,
जीवन सफल बनाने को,
आज भी सोचना मैं बंद नहीं कर पाता,
हर बार एक यक्ष प्रश्न
इस उत्तर के साथ खड़ा पाता हूं,
कि बस अगले कदम पर ही तो मंजिल है
उसके बाद सोचने कि क्या जरुरत है ?
लेकिन कदम दर कदम चलने के बाद,
सिर्फ तृष्णा ही पाता हूं,
सोचना बंद करना तो दूर,
यह सोचने में लग जाता हूं,
कि आखिर इस सोचने,
पर कैसे विजय पा सकता हूं ?