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Life Poem

अब घर से निकलना हो गया है मुश्किल,
जाने किस मोड़ पर खडी है मौत......
दस्तक सी देती रहती है हर वक्त दरवाजे पर,
पलकों के गिरने उठने की जुम्बिश भी सिहरा देती है....
धड़कने बजती है कानो में हथगोलों की तरह,
हलकी आहटें भी थर्राती है जिगर ......
लेकिन जिन्दगी है की रुकने का नाम ही नहीं लेती,
दहशतों के बाज़ार में करते है सांसो का सौदा....
टूटती है, पर बिखरती नहीं हर ठोकर पे संभलती है,
पर कब तक ??? कहाँ तक???????
क्यूंकि अब घर से निकलना हो गया मुश्किल
जाने कौन से मोड़ पे खडी है मौत........
डर से जकड़ी है हवा,दूर तक गूंजते है सन्नाटे...
खुदा के हाथ से छीन कर मौत का कारोबार,
खुद ही खुदा बन बैठे है लोग....
मुखोटों के तिल्लिस्म में असली नकली कौन पहचाने
अपने बेगानों की पहचान में ख़त्म हो रही है जिन्दगी ...
अब लोग दूजों की ख़ुशी में ही मुस्कुरा लेते है,
घर जले जो किसी का तो,दिवाली मना लेते है....
खून से दूजों के खेल लेते है होली,
उडा कर नया कफन किसी को वो ईद मना लेते है........
क्यूंकि घेर से निकलना हो गया है मुशकिल
जाने कौन से मोड़ पर कड़ी है मौत....