¢½ मैं दो कदम चलता और एक पल को रुकता मगर...........
¢½ इस एक पल जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे बढ जाती ।
¢½ मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रुकता और....
¢½ जिन्दगी फिर मुझसे चार कदम आगे बढ जाती ।
¢½ युँ ही जिन्दगी को जीतता देख मैं मुस्कुराता और....
¢½ जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैंरान होती ।
¢½ ये सिलसिला यहीं चलता रहता.....
¢½ फिर एक दिन मुझे हंसता देख एक सितारे ने पुछा..........
¢½ " तुम हार कर भी मुस्कुराते हो ! क्या तुम्हें दुख नहीं होता हार का ? "
¢½¢½ तब मैंनें कहा............
¢½ मुझे पता हैं एक ऐसी सरहद आयेगी जहाँ से आगे
¢½ जिन्दगी चार कदम तो क्या एक कदम भी आगे ना बढ पायेगी,
¢½ तब जिन्दगी मेरा इन्तज़ार करेगी और मैं.....
¢½ तब भी युँ ही चलता रुकता अपनी रफ्तार से अपनी धुन मैं वहाँ पहुँगा....
¢½ एक पल रुक कर, जिन्दगी को देख कर मुस्कुराउगा..........
¢½ बीते सफर को एक नज़र देख अपने कदम फिर बढाँउगा।
¢½ ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाउगा.......
¢½ मैं अपनी हार पर भी मुस्कुराता था और अपनी जीत पर भी...
¢½ मगर जिन्दगी अपनी जीत पर भी ना मुस्कुरा पाई थी और अपनी हार पर