फ़ना हो चुके है......................
हर मुलाकात में निघाएं यही फरियाद करती है ,
कि किसी पल पलट कर देखने को जी चाहता है ............
वो तो हमें देख कर अनदेखा करजाते है ,
कि उनकी नजरो में रहजाने को जी चाहता है ............
वो क्या समझेंगे हमारी मोहबत को ,
वो तो खोये है किसी और के मोहबत मे ,
कि उनकी मोहबत मे खोने को जी चाहता है ..........
आप् कि मोहबत ने बहुत रंग दिए है हमें ,
कि अब इन्ही रंगो में रंग जाने को जी चाहता है .........
उलझ चूका हू इस उलझे हुए वक्त को सुलझाने मे ,
कि आप् की उलझी जुल्फों को सुलझाने को जी चाहता है ...........
फंना हो चुके है आप् की मोहबत मे ,
कि अब शायरी मे इजहार करने को जी चाहता है ............
अगर ख्वाईस है आजमाने कि तो जान मांग लो ,
कि अब उन्हें अपना बनाने को जी चाहता है .........
ना कभी ख़तम करसकेंगे ये शायरी ,
कि उनको शायरी मे वापस लेन को जी चाहता है ..................