खून अपना हो या पराया हो
नस्ल ए आदम का खून है आख़िर
जंग मशरिक में हो या मग़रिब में
अमन ए आलम का खून है आख़िर
टैंक आगे बढ़ें या पीछे हटें
कोख धरती की बाँझ होती है
फ़तहे का जश्न हो या हार का सोग
जिंदिगी मैयतों पे रोती है
जंग तो ख़ुद ही एक मसला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
खून ओर आग आज बरसेगी
भूख ओर एहतियाज कल देगी
इसलिए ए शरीफ इंसानों
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप ओर हम सभी के आँगन में
शम्मा जलती रहे तो बेहतर है